Monday, February 08, 2016

नासमझ

  हम समझ न पाए इन दोस्तों को, रिश्तेदारों को, इन पढ़ोसियो को, किराएदारों को, सामाज के पेहेरेदारों को। बड़े ख़्वाब देखें जी हमारे लिये कुछ लोगों ने, हम ठहरे निक्कमें, ज़िंदग़ी की लहरों में बहते चले गए, न तैरने का चाह रही, न डूबने की हिम्मत। हुनरमंद तो जी हम भी थे, पर हमारे हुनर हमारे साथ हमारी जेबों में ठसे बह रहे हैं इन लहरों में। दरअसल हमें बचपन में ही जता दिया गया था कि बेटा निखट्टू, तुमसे कुछ ना हो पाई। पर जी ऐसा है कि हमने कभी ज़ाहिर यह नहीं होने दिया कि हम तो अपनी दुनियाँ में ख़ुश हैं।

  हमारी दुनिया है अजीब, क़ुदरत के बाशिंदों हैं हमारे दिल के बहुत क़रीब, पेड़ पौधे, जीव जंतू, इन सब से है हमें प्यार।  हसींन नज़ारों और सुर संगीत पर भी हैं हम न्योछार। डरते हैं तो सिर्फ़ इंसानों से और इंसानों की नक़ली दुनिया से। और इस ख़ौफ़ पे क़ाबू पामे में लगे हैं। नास्तिक से आस्तिक हो चले हैं, सोचते है कि शायद उस परवरदिगार की बदौलत ज़िन्दा हैं, नहीं तो हम में ऐसी दुनियाँ में जी जाने का हुनर तो है नही, रुतबा तो दूर की बात है। बस एक ज़िद्द है, अब एक ज़िन्दगी जो हमारी मर्ज़ी के बिना हमें स़ौंप ही दी गई है, इसे जियेंगे तो अपने हिसाब से, अरे साहिब, हमारा हिसाब सीधा साधा है हमारी तरह, बहते रहो, तैरने में इतने मश्रूफ न हो जाओ कि यह देख ही न पाओ कि ज़िदग़ी दरअसल ख़ूबसूरत है। मेरे भाई, यह ज़रा दूसरों को पछाड़ने की जद्दोजहद में और अपने आप को महान सिद्ध करने की ज़बरदस्त कोशिशों से यह हसींन वादियों में गंदगी फैल रही है, क़ुदरत का विनाश हो रहा है, इस सुंदरता को बक्श दो। हम जैसे निखट्टुओं के नज़ारे ख़राब न करो।

  बन जाओ तुम नः १ हर चीज़ में, इम्तिहान में हो जाओ तुम टौपर, ख़ूब पैसा कमाओ, फिर उस दौड़ में ज़िंदगी भर भागते चले जाओ, चूसो ग़रीबों का ख़ून और और भी अमीर होते जाओ। पर तुम्हारी दुआ में कभी शुक्रग़ुज़ारी नहीं सुनी, सुना तो सिर्फ़ स्वार्थ। यार ख़ुदा पर विश्वास भी करते हो और निडर हो कर उसकी क़ुदरत की बेअदबी भी करते हो? दरअसल अमीर होने के बावजूद, हो तुम भिख़ारी।

  ऐसे लोगों की बनाइ इस दुनियाँ का हिस्सेदार मैं तो न हो पाऊँगा। मास्टर जी  ऐसा नहीं
है कि हमसे हो न पाएगा, ऐसा है कि हम करेंगे नहीं, क्यूँकि, हमारे मुताबिक़ ज़िन्दगी में करने को ऐसी चीज़ें भी हैं जो सही मायनों में अच्छी है।

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