अब हुआ यूँ कि मैंने एक ऐसा अवसर खो दिया है (शायद) जिसका मुझे ज़िंदगीभर अफ़सोस रहेगा। अब हुआ यूँ कि मैंने एक फोटोग्राफी कार्यशाला में अर्ज़ी डाली थी। मैंने ३ तसवीरें अपलोड की और उनके विवरण भी लिखे। मुझे जान्ने वाले लगभग सभी लोग जानते है कि मुझे फोटोग्राफी का कितना शौक है, बल्कि यु कहिये कि शोक ही नहीं, तस्वीरे लेना तो मेरे व्यक्तित्व का अविभाज्य अंष है।
अजीब बात है और मैं फोटोग्रापफी के बारे में बहुत ही विस्तार से भाषण दे सकता हूं परंतु जब बात एक विख्यात फोटोग्राफर ने मुझे फ़ोन करके मुझ से बात की तो यूँ कहिये कि मैं सकपका सा गया और बेवकूफी से बड़बड़ा कर सब गुड़ गोबर कर दिया। और तो छोड़िये साहब, मै तो यह भी न बता पाया कि इस कार्यशाला में जाने का मुझ पर कितना बड़ा जूनून था। शायद यह इसलिए हुआ क्योंकि फ़ोन जब आया तो मेँ अपनी लैब-मीटिंग की तैयारी कर रहा था और फ़ोन आते ही मैं अपने विचारों का संतुलन सा खो बैठा। इसके आलावा फ़ोन का सिगनल भी ठीक नहीं था और आवाज़ बार बार कट रही थी । और बात यह भी है कि मैंने उम्मीद भी नहीं की थी कि स्वः श्रीमान प्रसेणजीत यादव का ही फ़ोन आ जायेगा।
खैर कारण जो भी रहा हो, श्री प्रसेणजीत यादव, जो एक विख्यात फोटोग्राफर हैं , को मुझसे बात कर के शायद लगा होगा कि मैं फोटोग्राफी एवं विज्ञान संचार को ले के खास उत्साहित हूँ । काफी अफ़सोस हो रहा है पर जो हुआ सो हुआ, शायद मुझे मौका मिल ही जाए और मुझे वह चुन ही लें। खैर, अगर न भी लें तो यह ख्याल मुझे सिर्फ रात को सोते हुए ही सताएगा क्योंकि बाक़ी के दिन में तो समय होता नहीं।